अनिरुद्ध सिंह बकलोल के रचना संसार
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वन्दे मातरम्!मित्रो!आज मेरे बाबूजी का जन्मदिन है।आज उनको नित्य की भाँति मेरा हार्दिक नमन। बाबूजी!आप शरीर से न सही पर आत्मवत मेरे हृदय में विराजते हैं। दुनिया को कैसे बताऊँ कि आप यहीं रहते हैं मेरे साथ।
मित्रो!आपको पता है कि मेरे बाबूजी भोजपुरी और हिन्दी के एक बहुत संवेदनशील रचनाकार थे।तो आइये आप भी पढ़िए उनके कुछ भोजपुरी गीत और उनकी संवेदना को समझिये।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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०००गीत०००
(1)
रचना-अनिरुद्ध सिंह'बकलोल'
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हमरा मन के पागल पंछी,कहाँ कहाँ भटकेला।
1
बिना दाम गुलाम बना ल ,एक मीठ बोली पर।
अतना दिल के साफ़ कि चाहें बईठा द गोली पर।
चाहsत ऊपर रखवा द,चिटुकी भर मैदा के।
बंदी कर ल मन पंछी के,प्रेम जाल बिछवा के।
भोला पंछी दाव-पेंच के,तनिको ना समझेला।
हमरा मन के पागल पंछी.........
2
अबहीं बैठि सुनत बा कतहीं,मधुमासी के तान।
तब तक केहू मधुर कंठ से,गा देला कुछ गान।
बड़ा रसिक मन के पंछी ई,तुरत उहाँ दउरेला।
बात बात में खिलखिल जाला,बात बात मउरेला।
एह डाली से ओह डाली पर,डाल डाल लटकेला।
हमरा मन के पागल पंछी...........
3
चाहें तू अखियाँ से हँसि लs,या अँखियन से रोलs।
बिना हिलवले जीभ भले ही,अँखियन से ही बोलs।
अलगे हीं होला दुनिया में,अँखियन के इक भाषा।
बिना बतवले पढ़ि लेला मन,अँखियन के परिभाषा।
पढ़ लेला पर तुरत उहाँ से,पाँखि झाड़ झटकेला।
हमरा मन के पागल पंछी..........
4
बेदरदी दुनिया में भटकत ,ठहर ना पाइल पाँव।
ललकेला मन कि सुस्ताईँ,लउकल तरु के छाँव।
ई ना समझेला कि दुनिया,खोजे एक बहाना।
बईठल डाली पर पंछी के,बनि जाला अफसाना।
कतना भोला मन के पंछी,ना परवाह करेला।।
हमरा मन के पागल पंछी.......
5
कभी कभी उड़ते उड़ि जाला,आसमान से उपर।
फिर तुरते मनवा चाहेला,आ जईतीं धरती पर।
ना जानेला चिकनी चुपड़ी,एतने बात खराब।
का होई अंजाम ना बुझे,देला साफ़ जवाब।
एही से ई ढुलमुल पंछी,मन मन में खटकेला।
हमरा मन के पागल पंछी........
6
दूध पियब तरकूल के नीचे,लोग कही की ताड़ी।
अहंकार,मद में मातल जग,साधू बनल अनाड़ी।
जे गर्दन तक फँसल पांक में,उ का बोली बोली?
मारीं चांटी घर घर के हम,कच्चा चिट्ठा खोलीं।
थाकेला पंछी डमखू पर,थोरिका सा अड़केला।
हमरा मन के पागल पंछी.........
7
कभी कभी उड़ते उड़ि जाला,अइसन एक गली से।
गमक उठेला मन के आँगन,जहवाँ एक कली से।
केहू केवल एक बोल हीं,बोल दीत मुस्का के।
हो जाईत मदहोश बटोही,एक झलक हीं पाके।
एक झलक के खातिर पंछी,कतना सर पटकेला।
हमरा मन के पागल पंछी............
8
सागर से भी गहरा बाटे,आसमान से नील।
अमिय हलाहल मद में मातल,उ अँखियन के झील।
जवना में हरदम लहरेला,मदिरा अइसन सागर।
लेकिन अबहीं ले खाली बा,हमरा मन के गागर।
एक बूंद खातिर पंछी के,कतना मन तरसेला।
हमरा मन के पागल पंछी..........
9
तू का जनबs कईसन होला,मन के पीर पराई?
उहे समझेला पीड़ा के,जेकरा पैर बेवाई।
प्रेम-पाश में बाँध गाछ के,उपर पहुँचल लत्तर।
दू दिल मिलला पर का होला,तू का जनब पत्थर।
तू का जनब मन में कईसन,विरहानल धधकेला।
हमरा मन के पागल पंछी.........
10
पास बसेला बैरी लेकिन,लागे कोस हजार।
प्रियतम मन के अन्दर होला,चाहें बसे पहाड़।
सिन्धु बीच प्यासल बा पंछी,लहर रहल बा सागर।
प्यास मिटावल मुश्किल,तानल लोक लाज के चादर।
आह उठेला सर्द दर्द,जब झंझा बन झनकेला।
हमरा मन के पागल पंछी,कहाँ कहाँ भटकेला।।
गीत-2
मन मलिन पट अस्त व्यस्त,आ पकड़ि भयावन डहर।
भोरे-भोरे चलल जात बाड़ी एगो रुसनहर।
अतना बाटे ठंढ,छुवत में पानी भी ठरवता।
पछुआ बहत बयार कि जइसे जाड़ो के जड़वता।
कठिन माघ के जाड़,हाड़ में बर्छी अस छेदता।
ऊनी, शाल,दोशाल, रजाई,तोसक के भेदता।
टिपतिपात बा मेह,राह में डेग डेग बिछलहर।
भोरे-भोरे .....
बचपन से अरमान सजल,ना मन के मीत मिलल होई।
मिलल ना होई नेह नीर,ना मन के कली खिलल होई।
प्रिय से ना मनुहार,मगर दुत्कार भेंटाइल होई।
रूढ़ियन से जकड़ल, पिछड़ल, परिवार भेंटाइल होई।निकल पड़ल होई अऊंजा के, भोर भोर के पहर।
भोरे -भोरे.....
अबगे अबगे आईल होइहें,साजन ससुरारी से।
अंगना में बतियावत होइहें, अपना महतारी से।
बड़ा ललक के पूछले होई, नइहर के कुशलात।
कहि देले होई निर्मोही ,लागे वाली बात।
लागल होई ठेस हिया में, उठल होई लहर।
भोरे- भोरे....
आँगन के नल पर कुछ,कपड़ा फिंचे आइल होई।
सिर पर से आँचर गिर के कुछ, नीचे आइल होई।
तबे कर्कशा सास खूब,झपिला के डंटले होइहन।
जेठानी भी लाज शरम पर, भाषन छंटले होइहन।
छोटकी ननदी बात बात पर,घोरत होई जहर।
भोरे -भोरे..
देखले होइहन बेटी खातिर, पिता सुघर घर बार।
दुलहा भी अइसन कि जइसे, सुन्नर राजकुमार।
सोचले होइहन कि रहि जाई, अब हमार मर्यादा।
पर दहेज के दानव, हर ले ले होई शहजादा।
कवनो जगह अछूता नईखे,का देहात का शहर।
भोरे- भोरे.....
बाबूजी के नैन के पुतरी, माँ के राजदुलारी।
भईया के मनभावन गुड़िया,फूल नियर सुकुमारी।
लाड़ प्यार में पलल,चाल में गौरव गरिमा वाली।
कउवा के संग ,बान्हि दिहल होई सुकवार मराली।
खार समुंदर में जी कइसे,मानस सर रहनहर।
भोरे- भोरे....
आपन मान छोड़ि के मानिनी,सब दुख दर्द भुला के।
मिलन सेज पर थाकल होई,प्रिय के मना मना के।
जाहिल का समझी कि का ह, प्रेम,प्रीति,अपनापन।
सूति गईल होई बेदरदी, मूंह फेरि के आपन।
कांट बिछौना कबले डाँसी,फूल सेज सुतनहर।।
भोरे- भोरे....
या अनयासो सास ननद से, झगरा लागल होई।
जेठानी से आभी गाभी, रगड़ा लागल होई।
भरले होइहें कान पुत्र के, निमक मिरीच मिलाई।
घर वाला तब कइले होई,कस के खूब पिटाई।
शायद इहे बतिया बनिके, बरिसल होई कहर।
भोरे -भोरे.....
3-
"मँहगी आ गरीबी"
(पति पत्नी के संवाद)
पति
खाली भइल रस के गगरी,
सगरी सुख चैन कहाँ ले पराइल।
मँहगी के चलल कुछ गर्म हवा,
रस सींचल स्वर्ण लता मुरझाइल।
केरा के पात सा गात तोहार,
अरु लाल कपोलन के अरुनाई।
नैनन के पुतरी उतरी छवि,
याद परे पहिली सुघराई।।
पत्नी
सब हास विलास के नाश भइल,
हियरा के हुलास हरल मँहगाई।
जवानी में ही बुढ़वा भइलs,
कि अभावे में बीति गइल तरुनाई।
धोतिया धरती ले छुआत चले,
केशिया लहरे सिर पै घुंघराले।
कतना गबरू रहलs पियवा,
जब याद परे त करेज में साले।।
पति
आगि लगे मँहगी के तोरा,
सब शान गुमान पराइल हेठा।
धनिया मोरी सुखि के सोंठ भइल,
लरिका दुबराई के भइल रहेठा।
चोली पेवन्द पुरान भइल,
सुनरी चुनरी तोर झांझर भइले।
टुटि गइल करिहाई अरे हरजाई,
तोरा मँहगाई के अइले।
माघ के जाड़ पहाड़ भइल,
कउड़ा कपड़ा बनि के तन ढापे।
फाटि गइल कथरी सगरी,
पछुआ सिसिआत करेज ले काँपे।
धान गेहूँ कर बात कवन,
सपनो नहि आवे चना मसूरी के,
गरीबी गरे के कवाछ भइल,
अब का हम कहीं मँहगी ससुरी के।
पत्नी
सुखल छाती के माँस छोरा,
छरिया छारियाकर नाहि चबईतें।
घीव घचोरे के ना कहिते,
महतारी के माँस बकोटी ना खईतें।
जो जुरिते मकई थोरिका,
लरिका सतुआ सरपोटि अघइतें।
जो न जवान रहीत धियवा,
मँहगी जियवा के कचोटि ना जइते।
पति
एक करे मनवा हमरा,
भउरी भरवा भर पेट जे खइतीं।
रनिया के मोरा छछने जियरा,
कतहीं से ले आ पियरी पहिरइतीं।
दिन बड़ा मनहूस होला,
लरिका के पड़ोसिन ले झरियावे।
कंहवा से इ आई गइल ढीढ़रा,
इ त खाते में आवेला,दीठ गड़ावे।
रोज कहे छउंड़ी छोटकी,
हमरा हरियर ओढ़नी एगो चाहीं।
बाबूजी तू केतना बिसभोरी,
कहेल त रोज ले आवेल नाहीं।
दीन बना के हे दीन सखा!
कतना जग में उपहास करवलs।
एकहू सरधा जे पूरा न सकीं,
तब काहे के बेटी के बाप बनवलs।।
4-
राउर याद भुलाएब कईसे
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जब घिरी आई रात अन्हरिया ,
दादुर शोर मचावे लगिहें |
जब चकोर चंदा के खातिर ,
नैनन जल बरसावे लगिहें |
मन के मीत मिली ना कतहीं ,
दिल के आग बुझाएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
जग निस्तब्ध नींन से मातल ,
जब ई सब दुनिया सो जाला |
सुघर चांदनी के सागर में ,
राउर रूप छटा लहराला |
तैराब मृगतृष्णा के जल में ,
रूप छटा बिसराएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
ओहदिन रउवां जाए के बेरा ,
पथ में आँखि बिछवले रहनी |
नैनन के कोना में बरबस ,
अँसुवन धार दबवले रहनी |
देखीं आज कवने रस्ता से ,
आँखि बचा के जाएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
बिना दाम गुलाम बनवलस,
राउर सूरत भोली-भाली |
अब त हाय बिसरते नईखे ,
उ अँखियाँ कजरा वाली |
रउवां बिना इहाँ केकरा से ,
कविता अपन सुनाएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
गरिमा भरल चाल ,बाल के ,
निचे तकले बिखरावल|
राह चलत पल-पल में राउर ,
आँचर पांजर में लहरावल |
रहि-रहि याद परी त बोलीं ,
मनवा के समझाएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
चितवेनी रउवाँ अंखियन में ,
मदिरा के सागर लहराला |
नयनन -कमल मुदा गईला पर ,
मन के मधुप बंद हो जाला |
बिना निकर दिनकर के पवले,
बोलीं बाहर आएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
बिलबिलाय फाटल बिम्बाफल,
युगल अधर के अरूनाई पर |
भागल हंस सरोवर धइलस ,
मस्त चाल के सुघराई पर |
खंजन कहे छान्ह पर बइठल ,
आँखि से आँखि मिलाएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
दमकत दांत देखि भुईयां में ,
छितरा गईल अनार के दाना |
वेणी देखि पराइल नागिन ,
फानि मानि में करत बहाना|
केदली कहल ,गोल जांघन पर ,
कहीं ! कपूर चबाएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
पैरन में जंजीर पड़ल बा ,
बड़ा जोर बाहर पहरा बा |
चकवा -चकई के बीचे में,
अगम धार नदिया गहरा बा |
बोलीं ! अब अइसन हालत में ,
रउवां पासे आएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
मन के मीत बड़ा निरमोही,
बड़ा क्रूर बगिया के माली |
चोंच पांखि सबहीं जरि गईले,
लगल आग विरहा के आली |
दूनू पंख कटा गईला पर ,
दूर भागि के जाएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
चारो ओर अँजोरिया विहँसे ,
दीप-जोत बरखा बरसत बा |
तनिको कहीं अन्हरिया नईखे ,
किरन कोर बिन मन तरसत बा |
विकल प्राण रहि-रहि कसकेला,
ताम के दूर भगाएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
रउवां दिहनी फूल अभागा ,
कर खोलनी त कांट भेटाइल|
झमकि,झमकि के बदरी बरिसल,
धरती के तन ,प्राण जुड़ाइल |
प्यासे रहल प्राण के पाखी ,
तन-मन प्राण जुड़ाएब कईसे |
राउर याद भुलाएब कईसे |
5-
चान सरीखा फूल का अइसन,बाबू हामार आल्हर।
आव बहू! बबुआ के दे द तनी काजर।।
1
ममता में भींजल तहार माई गुण आगर।
मिसि के अबटि के,बिछा देली चादर।
पलना सुता के कभी,निदिया बोलावेली।
चुटकी बजाके कुछु,मीठे मीठे गावेली।
कभी मुसुकाल,कभी ओठ बिजुकावेलs।
सुतला में सुसुकी के,माई के डेरावेलs।
कबो थोड़ा ताकि लेल,क के आँख फाँफर।
आव बहू...
2
आईल होइहें सपना में,लगे तहार नानी।
हँसिके सुनावत होईहें,तहके कहानी।
मोरवन के नाच के,देखावत होइहें नाना।
या कहीं सुनात होई,परियन के गाना।
तबे नू सुतलका में,खूबे मुसुकालs।
छनहीं में चिहुकेलs,छने में डेरालs,
सपना में शायद डेरवावत होई बानर।
आव बहू.......
3
दियवा के टेम्हिया पर,आँख गड़कावेल।
'आँऊ माँऊ'कईके कभी, माई के रिझावेल।
छनहीं में हँसि देल, छने छरियालs।
रोवेल तू काहें अइसे,केकरा से डेरालs।
तनिको बुझात नइखे,ईया के बुढ़ापा।
चुप रह बाबू काल्हु,अईहें तहार पापा।
केतना मोटा गईले,बाबा तोहार पातर।
आव बहू....
4
रोवनी, छरियइनी हमरा,बाबू लगे आवेना।
केहू हमरा बबुआ के,नजर लगावेना।
सुतल बाड़ें बाबू चुप ....शान से बातावेली।
कजरा के टीका के,लिलार पर लगावेली।
साटि के करेजवा,ओढ़वले बाड़ी आँचर।
आव बहू.......
5
बाबा ग्यानी पंडित हउवन ,ईया घर घूमनी।
नाना जी पंवरिया हउवन ,नानी हउवी चटनी।
चम् चम् चान सरीखा चमके नानी जी के बिंदिया।
भरल बजारे नाचत फिरस,नाना जी के दिदिया।
नायलोन के गंजी कच्छी टेरीकाटन जामा।
सोन चिरैया ले के अइहे बबुआ तोहार मामा।
बाबा जोतस दियरा दांदर, नाना चँवरा चाचर।
आव बहू............
कवि-अनिरुद्ध सिंह'बकलोल'
ग्राम+पोस्ट-आदमपुर
थाना-रघुनाथपुर
जिला-सिवान(बिहार)