न्याय बेईमान हो गया |
व्यर्थ संविधान हो गया |
देखकर अनीति का चलन ,
सत्य बेजुबान हो गया |
आज लोकतंत्र फिर लुटा ,
चोर फिर महान हो गया |
आदमी अब आदमी नहीं ,
हिन्दू मुसलमान हो गया |
पेशगी उसे भी कल मिली ,
प्यादा दीवान हो गया |
जबसे झूठे कथ्य, मानक हो गए |
सत्य के सिद्धांत, भ्रामक हो गए |
कौड़ियों के भाव ,जो कल तक बिके,
आज लाखों के, अचानक हो गए |
है डुबी लिप्सा में, जबसे लेखनी ,
हाशिये पर सूर ,नानक हो गए |
है कमी परिवेश, या माँ-बाप की ,
किस कदर बेटे ,भयानक हो गए |
दामिनी का दौर, निशदिन देखकर ,
दर्द से गुंफित, कथानक हो गए |
वक्त का है क्या ठिकाना ,क्या से क्या हो जायेगा |
आज है जो सुर्ख़ियों में ,कल निहां हो जायेगा |
झूठ के दरबार में, सच बोलना अपराध है ,
फिर भी खुद पर रख भरोसा ,फैसला हो जायेगा |
बात अच्छी है तो, दुनिया को बताओ तुम सदा ,
लोग माने या नहीं ,पर मशविरा हो जायेगा |
सुधर जायेगी ये दुनिया ,ना कोई शिकवा -गिला ,
आदमी खुद के लिए जब ,आईना हो जाएगा |
प्यार छुपने से ,छुपाने से, भी यूँ छिपता नहीं ,
अँधेरों में सितारों-सा ,नुमायां हो जाएगा |
स्वार्थ में टुच्ची औ सस्ती हो गई |
सियासत मौकापरस्ती हो गई |
हो गया मुहाल ,जीना अब यहाँ ,
हर तरफ चोरों की, बस्ती हो गई |
बेवजह गुलाम ,दिल को कर दिया ,
मन की जैसे ,जबरदस्ती हो गई |
देखकर पीड़ा, हमारी आँख में ,
उनकी जैसे, दिल की मस्ती हो गई |
भूख से पामाल थी, किस्मत कभी ,
आज वो दुनिया की हस्ती हो गई |
मानव -मन की शुष्क धरा में ,प्राण जगाने आया हूँ |
अंतस के अँधियारों को ,मैं दूर भगाने आया हूँ |
निगल न जायें अँधियारे ये ,किरणों के नव स्पंदन ,
स्पंदन में जिजीविषा के, बीज उगाने आया हूँ |
सुविधाओं के पिंजरे में ,पंखों का अर्थ भूला पंछी ,
गीत उड़ानों का लेकर मैं, आज सुनाने आया हूँ |
मातृभूमि की प्रखर वंदना और मुक्ति की चाह लिए ,
भक्ति ,क्रांन्ति का पुष्प ,दीप ,नैवेद्य चढ़ाने आया हूँ |
भाईचारा ,प्रेम जहाँ पर,सपना है |
कैसे कह दूँ मुल्क, यहीं वो अपना है |
जहाँ सेक्स औ बलात्कार की बातें हीं ,
मीडिया ,अखबारों को, केवल जपना है |
मंत्र आज का ,दिखता है, वो बिकता है ,
इश्तेहार बन बाज़ारों में, छपना है |
जलते हुए सवालों को, हल कौन करे ,
या सदियों तक, हमको यूँ हीं तपना है |
नैतिकता औ मूल्यों की, जब बात करूँ,
कहते हैं सब, मुझमें अभी बचपना है |
अनुभवों की पाठशाला में, पढ़ें हम |
सच किताबों में नहीं ,खुद में गढ़ें हम |
जिंदगी की राह में, मस्ती की खातिर ,
प्यार की झोली लिए, हरदम बढ़ें हम |
सच किताबों में नहीं ,खुद में गढ़ें हम |
जिंदगी की राह में, मस्ती की खातिर ,
प्यार की झोली लिए, हरदम बढ़ें हम |
सुविधाओं का ख्वाब सँजोए,बैठे यहाँ निठल्ले लोग |
स्वार्थपूर्ति में सबसे आगे ,करते बल्ले-बल्ले लोग |
प्रेम ,समर्पण की धरती, वीरान सरीखी लगती है ,
जाति -धर्म की खींच लकीरें ,बाँटे हुए मुहल्ले लोग |
स्वार्थपूर्ति में सबसे आगे ,करते बल्ले-बल्ले लोग |
प्रेम ,समर्पण की धरती, वीरान सरीखी लगती है ,
जाति -धर्म की खींच लकीरें ,बाँटे हुए मुहल्ले लोग |
जिन्दगी के नाम इक ,अभियान लिखना चाहता हूँ |
चेतना की रश्मियों से ,ज्ञान लिखना चाहता हूँ |
आ सके ठंढी हवा ,लेकर मुहब्बत की सदा ,
सब दीवारों पे यूँ, रोशनदान लिखना चाहता हूँ |
चेतना की रश्मियों से ,ज्ञान लिखना चाहता हूँ |
आ सके ठंढी हवा ,लेकर मुहब्बत की सदा ,
सब दीवारों पे यूँ, रोशनदान लिखना चाहता हूँ |